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प्रिया की आस

प्रिया की आस

मन के सूने दरवाजे पर , तुम धीरे  से दस्तक दोगे?

दीप जलाकर बैठी हूं मैं , क्या तुम इसे  सजा दोगे?


शाम हो गई तुम बिन सूनी , अब तो तुम आ  जाओ।

यंत्र लिखित सीे बैठी हूं , प्रियतम को  पा हर्षा जाऊं।


मेरी  अंधियारी  रातों को, उजियारों  में बदल दोगे? 

दीप  जलाकर बैठी हूं मैं, क्या तुम   इसे सजा दोगे?


मन  हो  रहा  बहुत उदास ,आंखों के  कोरे सूने हैं।

कुछ मोहक सपने सहेजें ,जो तुम संग पूरे करने हैं।


सूखे मन की बगिया मेंं,खुशियों के पुष्प खिला दोगे?

दीप  जला कर बैठी हूं मैं , क्या तुम इसे सजाा दोगे?


तुम संग हंसना तुम संग रोना ,जीना तुम संग सीखा है।

मेरे जीवन की राहों में,कोई भी प्रिय न  तुम सरीखा है।


आशाओं के ज्योतिपुंज को , थोड़ी  सी  बढ़ा  दोगे? 

दीप जला कर बैठी हूं मैं ,क्या  तुम इसे सजा  दोगे?


जीवन का सार  तुम्हीं से है ,मेरे सारे श्रृंगार तुम्हीं  से हैं।

मेरे मन की वीणा से निकले , मधुर झंकार  तुम्हीं से है।


इन  गीतों के भावों  को तुम, सुंदर सा एक लय  दोगे?

दीप  जला कर बैठी हूं मैं , क्या तुम  इसे सजा  दोगे?


एक जरा सी दस्तक पर , दरवाजे तक भागी जाती हूं।

तेरी छवि न पाकर ,चित्रलिखित सी खड़ी रह जाती हूं।


मेरे इस करुण रस को, क्या प्रेम रस में बदल दोगे?

दीप जलाकर बैठी हूँ मैं ,क्या तुम इसे सजा  दोगे?


स्नेहलता पाण्डेय

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6 Comments

बहुत ही सुन्दर व शानदार रचना रची आपने 👌👌👌👌

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Niraj Pandey

21-Jun-2021 06:45 PM

वाह 👌

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Renu Singh"Radhe "

21-Jun-2021 06:08 PM

बहुत बहुत सुंदर रचना 👌🏻

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